indian navy day 2023: छत्रपति शिवाजी महाराज के सिंधुदुर्ग (मालवण) किले में मनाया गया नौसेना दिवस|

Indian Navy Day नौसेना दिवस पर हर साल भारत और पाकिस्‍तान के बीच 1971 के युद्ध को याद किया जाता है और इसे भारतीय नौसेना की अविस्‍मरणीय जीत के जश्‍न के रूप में मनाया जाता है|

Indian Navy
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सिंधुदुर्ग मालवण एक ऐतिहासिक जगा ने से एक है जहा की भूमि छत्रपति शिवाजी महाराज के पदस्पर्श से पावन है| अगर सच्चे रूप से नौसेना का कोई निर्माता था तो वो थे शिवाजी महाराज जिन्होंने अपना सर्वश्रेष्ट आरमार खड़ा किया, उनका यहाँ मानना था की जो समुन्दर पे राज करेगा सत्ता उसी की होगी , और उन्हेनो वो अपने आरमार के मदत से करके दिखाया , आज सम्पूर्ण भारत देश उनका ऋणी है| Indian Navy Day शुभ अवसर पे मालवण में छत्रपति राजे के प्रतिमा का उद्घाटन श्री नरेन्द्र मोदी जी के हातो से किया |

Indian Navy Day 4th December

दुनिया में ४ थी सबसे मजबूत Indian Navy की तकाद दिनों दिन बढती जा रही है| भारतीय नौसेना के पास कुल जहाजो की संख्या २८० से भी ज्यादा है| पंतप्रधान नरेन्द्र मोदी ने नौसेना दिवस पर भारतीय नौसेना की सराहना की और कहा की वे निडरता के साथ देश के टटो की रक्षा करती है| साथ ही उन्होंने यहाँ सबको ज्ञात करके दिया की आरमार यानिकी नौसेना की असली में शुरुवात छत्रपति शिवाजी महाराज ने की थी जिसकी वजह से हम अपने देश की नौसेना मजबूत कर सके है| उसीका उदारहण देते हुए उन्होंने सिंधुदुर्ग की अभेद किले का दाखला दिया|

भारतीय नौसेना का इतिहास 1612 से मिलता है जब कैप्टन बेस्ट ने पुर्तगालियों का सामना किया और उन्हें हराया था। इस मुठभेड़ और समुद्री डाकुओं के कारण हुई परेशानी के कारण ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को सूरत (गुजरात) के पास स्वाली में एक छोटा बेड़ा बनाए रखने के लिए मजबूर होना पड़ा। लड़ाकू जहाजों का पहला स्क्वाड्रन 5 सितंबर 1612 को आया, जिसे तब माननीय ईस्ट इंडिया कंपनी का मरीन कहा जाता था। यह कैम्बे की खाड़ी और ताप्ती और नर्मदा नदी के मुहाने पर ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापार की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार था। इस बल के अधिकारियों और जवानों ने अरब, फ़ारसी और भारतीय तटरेखाओं के सर्वेक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालाँकि बॉम्बे को 1662 में अंग्रेजों को सौंप दिया गया था, उन्होंने 8 फरवरी 1665 को द्वीप पर भौतिक रूप से कब्ज़ा कर लिया, और 27 सितंबर 1668 को इसे ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दिया। परिणामस्वरूप, माननीय ईस्ट इंडिया कंपनी की मरीन भी बन गई बंबई से व्यापार की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार।

1686 तक, जब ब्रिटिश वाणिज्य मुख्य रूप से बॉम्बे में स्थानांतरित हो गया, तो इस बल का नाम बदलकर बॉम्बे मरीन कर दिया गया। इस बल ने अद्वितीय सेवा प्रदान की, न केवल पुर्तगाली, डच और फ्रांसीसी, बल्कि विभिन्न राष्ट्रीयताओं के घुसपैठियों और समुद्री डाकुओं से भी लड़ाई की। बॉम्बे मरीन मराठों और सिदियों के खिलाफ लड़ाई में शामिल था और 1824 में बर्मा युद्ध में भाग लिया था।

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